Friday, April 1, 2011
परदेश का फरेब
मैं उसके गॉव गया वहां सब कुछ है पत्नी – घर - खेत - भैंस बस नौकरी नहीं है जिसे करने आ गया वो शहर सब कुछ छोड़कर प्रगति के अवसर ढूंढता हुआ, रहता है अब अकेला इस शहर के किसी छोटे-से कोने में रिक्शा ढोते हुए जूझता हुआ स्वयं से और समय से , हकीकत न जानने वाले गांव के सीधे लोग मानते हैं उसे विकसित और बन जाता है वह प्रेरणा स्रोत बेराजगार युवाओं के लिए । मै कनाडा तो नहीं गया पर लगा सका कुछ अनुमान फौरेन- माइग्रेशन का गांव के इस टूर से ।
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