Monday, October 13, 2025

Ghar

 

घर वह होता है
जहां कोई यह नहीं पूछता कि
इतनी जल्‍दी फिर क्‍यूं आ गये
इस बार आप कब तक रहोगे
जैसे दिल हो वहां रह सकते हैं
सोफे पर पैर रखकर बैठ सकते हैं
निक्‍कर पहन कर घूम सकते हैं
अपने मन का खाना  न बतायें 
तो भी वही सामने आ जाता है     
जहां जाने को हमेंशा मन करता है
पर वापिस आने का मन नहीं होता 
कितना भी रह लें मन नहीं भरता
संकोच और झिझक से परे
वहां मन की गांठे खोल सकते हैं 
बिना नापतौल के बोल सकते हैं
हँस तो सकते ही हैं रो भी सकते हैं
बाकी दुनिया तो चलती हुई डगर है
बस ऐसे घर पर ही जीना निर्भर है ।

No comments:

Post a Comment