Commune,
Community and Communalism
इंसान आता
तो अकेला है जिंदगी में
पर जन्म से
ही अकेला नहीं रह पाता
परिवार, परंपरा और समाज
लेबुल चिपका
देते हैं उस पर
जिन्हे असली
पहचान मानकर
वह उनको बचाने
के लिये
लगा रहता है
जिंदगी भर -
अपने जैसे
लोगों को तलाशता है
किसी कम्युनिटी
में शामिल हो जाता है
या फिर कोई
अपना नया ग्रुप बना लेता हे
पर कम्युनिटी
के कॉमन डिनोमिनेटर से ही
उसका चरित्र
और भविष्य भी तय हो जाता है
कोई कम्युनिटी
कितनी संकीर्ण या उदार होगी
अक्सर अपने
अंदर खुलापन नहीं रख पातीं :
एक जात-मजहब वालों की कम्युनिटी
एक क्षेत्र
के रहने वालों की कम्युनिटी
एक भाषा बोलने
वालों की कम्युनिटी
देश के मूल
निवासियों की कम्युनिटी,
विचार पर आधारित
कम्युनिटी ही
थोड़ी बहुत
मजबूत हो सकती है ;
अपनी कम्युनिटी
का स्वाभिमान
कब बदल जाता
है अहंकार में या फिर
दूसरी कम्युनिटी
के प्रति नफरत में
हमें पता नहीं
चल पाता
गुंडे और ताकतवर
लोग हावी हो जाते हैं
कम्युनिटी
के मसीहा व रक्षक बन जाते है
और कम्युनिटी
कम्युनल होती चली जाती है ।
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