Tuesday, April 14, 2015














बाल उलझे रहें 
हाल सुलझा रहें 
यह कैसे संभव है
मन में हो वेदना 
तन चंगा रहे 
यह कैसे संभव है
घर में झगड़ा हुआ
दफतर शांत रहे
यह कैसे संभव है
कुदरत उजड़ती रहे
विकास होता रहे
यह कैसे संभव है
दिन में गलतियां हो
रात नींद आया करे
यह कैसे संभव है
है सब कुछ गुंथा हुआ
तो देखें अलग अलग
यह कैसे संभव है !

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