Friday, March 8, 2013

और-रत


मेरी मां भी वही करती थी
जो आज मेरी बहन करती है
रोटी पकाती है खाना खिलाती है
बर्तन मांजती है कपड़े धोती है
झाडू़ और पोंछा करती है
राशन का हिसाब रखती है
ज्‍यादातर घर में ही रहती है
इन घरेलू कामों को अक्‍सर
महिलायें ही करती हैं
चाहे अपने घर की या बाहर की
जिन्‍हें हम रख लेते हैं मेडसर्वेंट -
आम औरत की हालत वही हे ;
मेरी बेटी के लिये कुछ बदला जरूर है
वो को-एड स्‍कूल में पढ़ने जाती है
खुद ही स्‍कूटी पर बाजार चली जाती है
बस में भी सीटें आरक्षित तो होती ही हैं
महिलाओं  के लिये
चाहे उस पर बैठे रहें आदमी बेशर्म होकर
मोबाइल पर लड़कों से बात कर सकती है
कपड़ों पर अब पहले सी पाबंदी नहीं है
पर उसकी मां उसे समझाती रहती है -
कुछ घर का काम भी सीख ले बेटी
तुझे पराये घर जाना है
जो न जाने तुझे कैसा मिले
नौकरी के क्षेत्र भी सीमित ही हैं
मध्‍यमवर्गीय लड़की के लिये
स्‍टनो-नर्स-रिसेप्‍शन-आपरेटर 
औरत का एक खास दिन मनाकर  
हम उसे अहसास कराते हैं
मजदूर की तरह
जो मजबूर है जीने के लिये
गैरबराबरी के समाज में ;   
पार्टियों में लेडीस फर्स्‍ट कहकर
हम थोड़ा शालीन बन जाते है
पर घर में औरतों को
रोटी लास्‍ट में ही मिलती है
नुमाइश की चीज समझकर
चीफ गैस्‍ट को बुके स्‍त्री से ही दिलवाते हैं
वंदना की रस्‍म भी वही अदा करती है ,
जेंडर-बायस के आरोप से
बचने के लिये
किताब के शुरू में ही लिख देते है 
आदमी के आगे कोष्‍ठक लगाकर
इसका मतलब नारी भी समझा जाये ;   
घर के बहुत सारे काम तो
आदमी भी बखूबी कर सकते है
और उन्‍हें करने भी जरूर चाहियें
जैसे बच्‍चे की टट्टी धोना
चाय बनाना , खाना परोसना
कपडे इस्‍तरी करना -
तभी अहमियत महसूस होगी
हमें घर संभालने वाली की ।
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आधा है चन्‍द्रमा, रात आधी
आधी है अपनी आबादी
इस आधे-अधूरे जीवन में
हक है हमारा आजादी
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