Thursday, March 21, 2013

हम पंडित हैं











पूजापाठ करते हैं हम
बड़े लोगों के घर 
संस्‍कृत के श्‍लोक पढ़ते हुए
जो न हमें समझ आते है
न उन्‍हें समझाने की जरूरत है  
बस कर्मकांड हो जाता है
आस्‍था के त्‍यौहार का
हमारे तोता-रटंत पाठ से
उनका घर शुद्ध हो जाता है
हमें मोटी दक्षिणा मिल जाती है ,
झुग्‍गी के बच्‍चों को प़ढाना
वाकई बहुत मुश्किल है
वे बहुत ऊधम मचाते हैं
अटपटे सवाल पूछते हैं  
रोज नहाते भी नहीं हैं
गंदे-फटे कपड़े पहनते है
वहां पढ़ाना भी फ्री पड़ेगा ,   
इसलिये हम
अफसरों के घर ही जाते हैं
शास्त्रों का पाठ करने के लिये
हम पक्‍के बनिये हैं !  

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