Friday, March 23, 2012

घर पर खड़े रहो दिन भर

गाड़ी खड़ी है
बंगले के अहाते में ,
साहब के बाहर आने का
लंबा इंतजार करते-करते
वह अब गया है :
चक्‍कर लगा लेता
हर पॉंच-दस मिनट बाद
बेचैन, थका, झुंझलाता
छोड़ कर जा भी नहीं सकता
कभी गाड़ी के अंदर जा बैठता
कैसेट पर पुराने गीत सुनता
बीड़ी फूँकता बीच-बीच में
गुटका खाता, पान चबाता
मोबाईल पर बतियाता
कभी गाड़ी का दरवाजा खोलता ,
कभी उसे बंद करता
जाने क्‍या सोचता होगा ...
कैद है वह
गाड़ी का चालक होने के बावजूद
वह गाड़ी ड्राइव करता है
और साहब ( व उनकी मैडम )
उसकी जिंदगी ड्राइव करते हैं,
कभी भी फोन घुमाकर बुला लेते हैं
उसे नहीं मालूम होता
कहॉं जाना है।
किसी दोस्‍त के घर पहुँचकर
खुद तो साहब गपशप और
मौज-मस्‍ती में
डूब जाते हैं
वह बाहर बैठा
इंतजार करता रहता है
कभी-कभार पूछ लेता है
पानी, चाय या नाश्‍ता
कोई घरवाला ।
मन तो होता होगा उसका
कभी गाड़ी लेकर भाग जाऊँ
या बीच में ही गाड़ी बंद कर
कह दूँ
अब आगे नहीं जा सकती
खराब हो गई
परंतु डरता भी है
झूठ बोलने से
धोखा देने से,
हायर्ड ड्राइवर है
फायर भी तो हो सकता है।
साहब, बाहर निकलकर
एक मिनट भी इंतजार नहीं
कर सकते-
वह चाहे घंटों
इंतजार करता रहे
बाहर निकलने वाले नखरैल
साहब का
मैडम साथ हों
फिर तो कहना ही क्‍या :
इंतजार भी लंबा
गुस्‍सा भी ज्‍यादा
और उसकी कैद भी कड़ी :
'' समय से नहीं आए..
इंतजार नहीं किया जाता...
पेट्रोल चुराते हो...
निकम्‍मे हो...''
यूँ तो हैं : वे साहब भी
अधीर, चोर, और निकम्‍मे
किन्‍तु थोड़ा बड़े दर्जे के।

1 comment: