Wednesday, August 24, 2011

अन्‍ना का सत्‍संग या सत्‍य का प्रयोग

देखकर अपनी आंखों से
सड़क पर उमड़े
जनसैलाब को
और सुनकर
क्रांति के स्‍वरों की गूंज
उठने लगा हे
मेरे भीतर भी ज्‍वार
उस मुहिम में
शामिल होने का
जिसे शुरू किया है
एक बूढे ने
छोड़कर खानापीना
व्‍यवस्‍था को बदलने की
जिद करते हुए ।

क्‍या और कब हासिल होगा
मुझे नहीं मालूम
बस :
उम्‍मीद जग गई है
आग सुलग गई है
मशाल जल गई है
मेरे दिल में :
यह जताने के लिए कि
मैं मुर्दा नहीं हूं
और
दे सकता हूं
कुछ तो
आहुति के तौर पर
इस सामाजिक महायज्ञ में ।

No comments:

Post a Comment