Thursday, August 4, 2011

दीपक तले अंधेरा

सुनकर खबर
अपने गांव के बगल में
बिजलीघर के बनने की
बहुत खुश हुए थे हम सब
इस उम्‍मीद में कि
जगमगाएगा
हमारा गांव भी ,
छिन गई हमसे
खेती की जमीन
बन गए हम मजदूर
नौकरी करने को मजबूर ,
बिजली पहले भी नहीं आती थी
बिजली आज भी नहीं आती है
पर पड़ोस में
बिजलीघर-कॉलोनी की
रोज रात की दिवाली
उदास कर देती है मुझे
लालटेन की रोशनी में
पढ़ने के
जख्‍म पर
नमक छिड़कते हुए ।

1 comment:

  1. सत्य को कहती अच्छी प्रस्तुति ... ज़मीन भी हाथ से गयी पर बिजली नहीं आई

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