Friday, April 12, 2013

सर की कार , सर पर सवार

मदमस्‍त हथिनी जैसी
झूम-झूम कर चलती है
नशे में धुत्‍त और चूर
ताकतवर की सत्‍ता
परवाह नहीं करती है
सड़क की - लोगों की
कुचलती ही रहेगी  वो
खिलाफती आवाजों को
जरूरी लगा उसको तो
भून डालेगी इंसानों को
बंदूक की गोलियों से
छोटे-बड़े जलियांवालाबाग
बनते ही रहेंगें घरती पर
सत्‍ता चाहे कोई हो
किसी भी रंगरूप की
किसी भी देशभूप की ,
हाथ में बैशाखी लेकर तो
आम आदमी ही चलेगा
राजाओं को पालकी में
बैठाकर खींचते हुये
शायद इसीलिये
कुरसी के नशे का
मजा लेने के लिये
चलती रहती है
सांठगांठ और जोड़तोड़
हर इलेक्‍शन में
चाहे वह गुरूद्वारे का हो
मोहल्‍ले की सोसाइटी का
सरकारी यूनियन का
गांव की पंचायत का
या फिर महासंसद का !




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