जरूरी है
किताबें पढना
जानने के लिए
लिखने का ढंग
पर सीखने के लिए तो
खुद को ही
लिखना पड़ेगा ,
वाह-वाह करते हुए
तालियां बजाने में
आनंद तो मिलता है
पर अपनी घुटी भांग
पीने का मजा ही
कुछ और है ,
टीवी पर
कलकत्ता मे खेले जा रहे
क्रिकेट मैच
देखने से
कहीं बेहतर है
अपनी गली में
क्रिकेट मैच खेलना ।
Tuesday, February 22, 2011
Friday, February 18, 2011
कौन बनेगा अरबपति !
अरब को अंग्रेजी में बिलियन कहते हैं
उसमें 1 के आगे नौ जीरो होते हैं
लगभग इतनी ही
हमारे देश की जनसंख्या है ,
भारतमाता के एक बेटे के पास
न जाने
क्या हुनर है
वह आज मालिक है
29 बिलियन डॉलर का
अखबार की इक रिपोर्ट के मुताबिक ।
मुकेश अंबानी वाकई अरबों का पति है !
मर जाए अगर वह आज और
उसकी दौलत को
बांट दिया जाए
सबमें बराबर , तो
सरकारी योजना की
विधवा पेंशन से
ज्यादा ही पड़ेगी
पर-कैपिटा राशि ।
मीडिया तो मुनीम है
फ्रंट पेज पर छापकर
इन लुटेरों की खबरें
उन्हें महामंडित करता है
जो बपौती और दलाली को
बेशर्मी से भुना रहे हैं ।
गरीबी का कारण ज्यादा पॉपुलेशन नहीं है
गरीबी का कारण चंद अमीरों की लूट है !
उसमें 1 के आगे नौ जीरो होते हैं
लगभग इतनी ही
हमारे देश की जनसंख्या है ,
भारतमाता के एक बेटे के पास
न जाने
क्या हुनर है
वह आज मालिक है
29 बिलियन डॉलर का
अखबार की इक रिपोर्ट के मुताबिक ।
मुकेश अंबानी वाकई अरबों का पति है !
मर जाए अगर वह आज और
उसकी दौलत को
बांट दिया जाए
सबमें बराबर , तो
सरकारी योजना की
विधवा पेंशन से
ज्यादा ही पड़ेगी
पर-कैपिटा राशि ।
मीडिया तो मुनीम है
फ्रंट पेज पर छापकर
इन लुटेरों की खबरें
उन्हें महामंडित करता है
जो बपौती और दलाली को
बेशर्मी से भुना रहे हैं ।
गरीबी का कारण ज्यादा पॉपुलेशन नहीं है
गरीबी का कारण चंद अमीरों की लूट है !
Thursday, February 17, 2011
सिस्टम बड़ा है व्यक्ति से
इंदिरा जी जब गुजरीं
सन चौरासी में
तो लगा झटका
इंडिया को
पर सब संभल गया
जल्द ही
और
देश बढ़िया चल रहा है
इतने बरसों से ।
लोग आते हैं , लोग जाते है
दुनिया चलती रहती है
किसी के चले जाने से
दुनिया नहीं थमती है
फिर भी न जाने क्यूं
लगता है उनको डर
‘ मेरे जाने के बाद क्या होगा ’
उस सरकारी मशीन का
जिसका वह सिर्फ इक पुर्जा थे
और शेल्फ लाइफ गुजरने के बाद
उन्हें आज रिटायर कर दिया गया ।
कब्रिस्तान भरे पड़े हैं
इतिहास रचने वाले लोगों से
जिन्हें हम सलाम तो करते हैं
पर दुनिया का काम तो
आज, हम ही करते है ।
सूरज उगने पर ही मुर्गा बांग देता है
मुर्गे के बांग देने से सूरज नहीं उगता
इंदिरा इंडिया नहीं थी
इंडिया इंदिरा नहीं है ।
सन चौरासी में
तो लगा झटका
इंडिया को
पर सब संभल गया
जल्द ही
और
देश बढ़िया चल रहा है
इतने बरसों से ।
लोग आते हैं , लोग जाते है
दुनिया चलती रहती है
किसी के चले जाने से
दुनिया नहीं थमती है
फिर भी न जाने क्यूं
लगता है उनको डर
‘ मेरे जाने के बाद क्या होगा ’
उस सरकारी मशीन का
जिसका वह सिर्फ इक पुर्जा थे
और शेल्फ लाइफ गुजरने के बाद
उन्हें आज रिटायर कर दिया गया ।
कब्रिस्तान भरे पड़े हैं
इतिहास रचने वाले लोगों से
जिन्हें हम सलाम तो करते हैं
पर दुनिया का काम तो
आज, हम ही करते है ।
सूरज उगने पर ही मुर्गा बांग देता है
मुर्गे के बांग देने से सूरज नहीं उगता
इंदिरा इंडिया नहीं थी
इंडिया इंदिरा नहीं है ।
Thursday, February 10, 2011
भूखे पेट भजन न होई
मेरे पास आया न्यौता
पाठ-कीर्तन का
जिसमें लिखा था
मोटे-मोटे अक्षरों में
“ अटूट लंगर भी बरसेगा “ ।
डिशेज की वैरायटी का
लंगर
बन गया है अवसर
गेट-टुगेदर का
पार्टी की शक्ल
अख्तियार करता हुआ :
पहले आमंत्रित गैस्ट और
वीआईपी को
खिलाते हुए ।
पुण्य है
लंगर खिलाना या
डोलचियों में भरकर
ले जाना घर
अमीर लोगों का ?
हां ,
यह बात जरूर है
कीर्तन सुनने के बाद
उसके शब्दों का असर
चाहे रहे न रहे
पर चलती रहती है
चर्चा भक्तों मे
कई दिन तक
“ उसके पाठ में लंगर बड़ा टेस्टी था “ !
पाठ-कीर्तन का
जिसमें लिखा था
मोटे-मोटे अक्षरों में
“ अटूट लंगर भी बरसेगा “ ।
डिशेज की वैरायटी का
लंगर
बन गया है अवसर
गेट-टुगेदर का
पार्टी की शक्ल
अख्तियार करता हुआ :
पहले आमंत्रित गैस्ट और
वीआईपी को
खिलाते हुए ।
पुण्य है
लंगर खिलाना या
डोलचियों में भरकर
ले जाना घर
अमीर लोगों का ?
हां ,
यह बात जरूर है
कीर्तन सुनने के बाद
उसके शब्दों का असर
चाहे रहे न रहे
पर चलती रहती है
चर्चा भक्तों मे
कई दिन तक
“ उसके पाठ में लंगर बड़ा टेस्टी था “ !
Wednesday, February 9, 2011
कारीगर की कीमत
रात के ग्यारह बजें थे
ठंड पड़ रही थी -
लाला जी
ढूंढते फिर रहे थे
रेलवे स्टेशन पर
कल्लू हलवाई को
जो गंदी बनियान पहने
कड़ाही मे जलेबियां
छानता रहता था
उनकी स्वीट शॉप पर
और आज शाम को
चला गया था रूठकर
तनख्वाह कम मिलने की
वजह से ।
लाला जी को भी
दुकान के मशहूर
सुबह के नाश्ते की
बिक्री की फिक्र ने
उस रात
सोने नहीं दिया होगा ।
ठंड पड़ रही थी -
लाला जी
ढूंढते फिर रहे थे
रेलवे स्टेशन पर
कल्लू हलवाई को
जो गंदी बनियान पहने
कड़ाही मे जलेबियां
छानता रहता था
उनकी स्वीट शॉप पर
और आज शाम को
चला गया था रूठकर
तनख्वाह कम मिलने की
वजह से ।
लाला जी को भी
दुकान के मशहूर
सुबह के नाश्ते की
बिक्री की फिक्र ने
उस रात
सोने नहीं दिया होगा ।
Monday, February 7, 2011
मां शारदे !
मेरे मन की वीणा को
संगीत के स्वरों से भर दो
विवेकी बना बुद्वि को
उसे श्वेत हंस जैसी कर दो
किताबे पढ़ता रहूं
कविताएं लिखता रहूं
ज्ञान की ज्योति जगाकर
स्व का मुझे सार दो
वाणी से गाता रहूं
तेरे ही गुण
ऐसा मुझे वर दो
करता रहूं सेवा हंसते हुए
उत्साह और ऊर्जा से
मुझको भर दो ।
संगीत के स्वरों से भर दो
विवेकी बना बुद्वि को
उसे श्वेत हंस जैसी कर दो
किताबे पढ़ता रहूं
कविताएं लिखता रहूं
ज्ञान की ज्योति जगाकर
स्व का मुझे सार दो
वाणी से गाता रहूं
तेरे ही गुण
ऐसा मुझे वर दो
करता रहूं सेवा हंसते हुए
उत्साह और ऊर्जा से
मुझको भर दो ।
Friday, February 4, 2011
बसंत - मिलन
झील के किनारे
पार्क में
रंग-बिरंगे और नाजुक
फूलों के बीच
अमुआ की डाली वाले
झूले में बैठी
पीताम्बरी साड़ी पहने : कल्पना
दिन के तीसरे पहर की
गुनगुनी धूप मे
सुनहरी सरसों को निहारती
गुनगुना रही थी
कोई गीत ,
मानो कर रही हो
अनुरोध गगन में
चहलकदमी करते हुए
कौए से
अपने प्रीतम को
बुला लाने का ।
ट्रेन की सीटी बजे
काफी वक्त गुजर चुका
हो गई डदास
सोच में डूबी
‘ क्या नहीं आए साजन
इस गाड़ी से भी ! ’
अचानक
मूंद ली आंखें उसकी
किसी ने
पीछे से आकर ,
और यथार्थ की
हथेलियों के
कोमल स्पर्श ने
कल्पना के इंतजार का
बस-अंत कर दिया
प्रेम की प्रकृति से
सौंदर्य- सुगंध का रस
बिखराते हुए
सब दिशाओं में ।
पार्क में
रंग-बिरंगे और नाजुक
फूलों के बीच
अमुआ की डाली वाले
झूले में बैठी
पीताम्बरी साड़ी पहने : कल्पना
दिन के तीसरे पहर की
गुनगुनी धूप मे
सुनहरी सरसों को निहारती
गुनगुना रही थी
कोई गीत ,
मानो कर रही हो
अनुरोध गगन में
चहलकदमी करते हुए
कौए से
अपने प्रीतम को
बुला लाने का ।
ट्रेन की सीटी बजे
काफी वक्त गुजर चुका
हो गई डदास
सोच में डूबी
‘ क्या नहीं आए साजन
इस गाड़ी से भी ! ’
अचानक
मूंद ली आंखें उसकी
किसी ने
पीछे से आकर ,
और यथार्थ की
हथेलियों के
कोमल स्पर्श ने
कल्पना के इंतजार का
बस-अंत कर दिया
प्रेम की प्रकृति से
सौंदर्य- सुगंध का रस
बिखराते हुए
सब दिशाओं में ।
Thursday, February 3, 2011
मत ललचाओ जी !
थाली में जो है
वो तो खा लो
पेट भर जाएगा
काहे हर स्टॉल पर
दौड़त- फिरत हो
प्लेट ले कर ,
जैसे कोई रिपोर्ट देनी हो
अपने घर जाकर
कैसा बना था
दावत का खाना
या फ्री के डिनर की
पूरी कसर निकालनी है ,
अरे भई !
तनिक सब्र करो
अगडम-बगड़म ठूंस कर
पेट को वेस्टबिन मत बनाओ
हाजमे का कुछ तो खयाल रखो ।
वो तो खा लो
पेट भर जाएगा
काहे हर स्टॉल पर
दौड़त- फिरत हो
प्लेट ले कर ,
जैसे कोई रिपोर्ट देनी हो
अपने घर जाकर
कैसा बना था
दावत का खाना
या फ्री के डिनर की
पूरी कसर निकालनी है ,
अरे भई !
तनिक सब्र करो
अगडम-बगड़म ठूंस कर
पेट को वेस्टबिन मत बनाओ
हाजमे का कुछ तो खयाल रखो ।
Wednesday, February 2, 2011
पशु-पक्षी और इंसान
कल झील के किनारे
घूमते हुए
बत्तखों को देख
मैं दार्शनिक हो गया :
क्या यही भोग योनियां हैं !
‘अपना दर्द किसी को बता नहीं सकते
अपने मन की किसी को कह नहीं सकते
भूख लगने पर मनपसंद खा नहीं सकते ‘
लोग तो बस आते हैं
घूमने-टहलने
पाप कार्न और आटे की गोलियां
डालकर चले जाते हैं ,
किसी ने कभी सोचा
उनका क्या खाने को जी चाहता है !
मोबाइल के कैमरे से
फोटो खींचकर
उनसे रिश्ता बनेगा क्या ?
जिनकी उम्र भी नहीं जानते हम
और न ही उनके नाम
बस कह देते हैं
पड़ोसी को :
‘ झील मे दस सुदर डक्स है
बच्चों को साथ लेकर आप भी देखने जाना ‘ !
घूमते हुए
बत्तखों को देख
मैं दार्शनिक हो गया :
क्या यही भोग योनियां हैं !
‘अपना दर्द किसी को बता नहीं सकते
अपने मन की किसी को कह नहीं सकते
भूख लगने पर मनपसंद खा नहीं सकते ‘
लोग तो बस आते हैं
घूमने-टहलने
पाप कार्न और आटे की गोलियां
डालकर चले जाते हैं ,
किसी ने कभी सोचा
उनका क्या खाने को जी चाहता है !
मोबाइल के कैमरे से
फोटो खींचकर
उनसे रिश्ता बनेगा क्या ?
जिनकी उम्र भी नहीं जानते हम
और न ही उनके नाम
बस कह देते हैं
पड़ोसी को :
‘ झील मे दस सुदर डक्स है
बच्चों को साथ लेकर आप भी देखने जाना ‘ !
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